कांग्रेस सांसद राहुल गांधी के हालिया आरोपों पर चुनाव आयोग ने कड़ा रुख अपनाया है। राहुल गांधी ने आयोग पर “वोट चोरी” का गंभीर आरोप लगाया था, जिसे चुनाव आयोग ने पूरी तरह खारिज कर दिया। आयोग ने बयान जारी करते हुए कहा कि इस तरह के दावे न केवल राजनीति में भ्रम फैलाने वाले हैं बल्कि संविधान और जनता दोनों का अपमान भी हैं। अब सवाल उठ रहा है कि क्या राहुल गांधी का यह बयान राजनीतिक रणनीति का हिस्सा है या इसके पीछे कोई ठोस सबूत मौजूद है।

चुनाव आयोग ने कहा कि लोकतांत्रिक संस्थाओं पर बेबुनियाद आरोप लगाना बेहद गैर-जिम्मेदाराना रवैया है। आयोग ने यह भी स्पष्ट किया कि उसके कंधे पर बंदूक रखकर राजनीति करना स्वीकार्य नहीं होगा। सूत्रों के अनुसार, आयोग ने राहुल गांधी को नोटिस भेजा है और उनसे सात दिनों के भीतर जवाब मांगा गया है। यदि वे अपने आरोपों को साबित नहीं कर पाते, तो उन्हें माफी मांगनी होगी या शपथ पत्र के जरिए प्रमाण देने होंगे।

विशेषज्ञ मानते हैं कि इस विवाद का सीधा असर आगामी चुनावी माहौल पर पड़ सकता है। कांग्रेस राहुल गांधी के नेतृत्व में लगातार यह आरोप लगाती रही है कि चुनाव आयोग सत्तारूढ़ दल के पक्ष में झुका हुआ है। वहीं, आयोग इन आरोपों को निराधार बताते हुए खुद की निष्पक्षता पर जोर देता रहा है।

इस मामले ने राजनीतिक हलकों में नई बहस छेड़ दी है। एक तरफ कांग्रेस नेता राहुल गांधी को विपक्षी दलों से समर्थन मिल सकता है, वहीं दूसरी तरफ आयोग के इस सख्त रुख से कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि आने वाले दिनों में यह विवाद और तूल पकड़ सकता है।

गौरतलब है कि इससे पहले भी राहुल गांधी कई बार चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली पर सवाल उठा चुके हैं। हालांकि, इस बार आयोग ने सीधे तौर पर उनकी टिप्पणी को चुनौती दी है और कार्रवाई की चेतावनी दी है। यदि राहुल गांधी नोटिस का संतोषजनक जवाब नहीं देते, तो उनके खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई भी संभव है।

फिलहाल, सभी की निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि राहुल गांधी आयोग को क्या जवाब देंगे—क्या वे माफी मांगेंगे या अपने दावों पर अडिग रहते हुए प्रमाण पेश करेंगे। यह तय है कि आने वाले सात दिन इस विवाद की दिशा तय करने में बेहद अहम साबित होंगे।