बिहार में आगामी चुनावों से पहले वोटर लिस्ट को लेकर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। चुनाव आयोग की SIR (Systematic Investigation of Roll) प्रक्रिया के तहत वोटर लिस्ट के सत्यापन में बड़ी संख्या में नेपाल, बांग्लादेश और म्यांमार से आए घुसपैठियों की पहचान की गई है। यह जानकारी बूथ लेवल ऑफिसर द्वारा हाल ही में किए गए सर्वे में सामने आई है। आयोग का कहना है कि सत्यापन के बाद ऐसे व्यक्तियों के नाम वोटर लिस्ट से हटा दिए जाएंगे। इस कार्रवाई पर विपक्षी दलों ने तीखी प्रतिक्रिया दी है और चुनाव आयोग की भूमिका पर सवाल खड़े किए हैं।

चुनाव आयोग के इस कदम के बाद AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट साझा करते हुए आयोग की आलोचना की। उन्होंने लिखा, “ये बेहद शर्मनाक बात है कि एक संवैधानिक संस्था जनता से सूत्रों के माध्यम से संवाद कर रही है। भारतीय चुनाव आयोग को यह स्पष्ट करना चाहिए कि उसे वोटरों की नागरिकता निर्धारित करने का अधिकार किसने दिया है।”

वहीं, राष्ट्रीय जनता दल (RJD) नेता तेजस्वी यादव ने भी चुनाव आयोग पर सवाल उठाते हुए पूछा कि सुप्रीम कोर्ट की सलाह के बावजूद दस्तावेजों की सूची में कोई बदलाव क्यों नहीं किया गया। तेजस्वी ने इस कार्रवाई को पक्षपातपूर्ण करार दिया और आरोप लगाया कि चुनाव आयोग एकतरफा रवैया अपना रहा है।

विपक्षी दलों के आरोपों के बीच चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया है कि घुसपैठियों के नाम वोटर लिस्ट में शामिल नहीं किए जाएंगे और यह प्रक्रिया केवल बिहार तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि SIR को पूरे देश में लागू किया जाएगा। आयोग का कहना है कि वोटर लिस्ट की शुद्धता सुनिश्चित करना उसकी संवैधानिक जिम्मेदारी है और इसी के तहत यह अभियान चलाया जा रहा है।

इस पूरे विवाद ने आगामी चुनावों से पहले राजनीतिक माहौल को गरमा दिया है। जहां चुनाव आयोग वोटर लिस्ट को अधिक पारदर्शी और त्रुटिरहित बनाने की कोशिश में है, वहीं विपक्ष इसे अपने खिलाफ साजिश मान रहा है। अब देखना यह होगा कि आयोग की यह पहल देश के अन्य राज्यों में भी किस तरह लागू की जाती है और उस पर क्या प्रतिक्रिया आती है।