बिहार में चुनाव आयोग द्वारा शुरू की गई SIR (Systematic Investigation and Revision) प्रक्रिया को लेकर सियासी घमासान तेज हो गया है। पटना से लेकर दिल्ली तक विपक्षी दलों ने इस कदम को लोकतंत्र पर हमला बताते हुए तीव्र विरोध प्रदर्शन किया है। इस बीच, तेजस्वी यादव ने चुनाव बहिष्कार की संभावना जताई है, जबकि चुनाव आयोग ने SIR को लोकतंत्र की मजबूती के लिए जरूरी बताया है।

बिहार में विधानसभा और लोकसभा चुनावों से पहले मतदाता सूची की समीक्षा के लिए शुरू की गई SIR प्रक्रिया को लेकर विवाद गहराता जा रहा है। विपक्षी दलों का आरोप है कि इसके जरिए जातिगत और धार्मिक आधार पर मतदाता सूची से नाम हटाए जा सकते हैं। सोमवार को दिल्ली और पटना में एक साथ कई विपक्षी नेताओं ने प्रेस कॉन्फ्रेंस और विरोध प्रदर्शन करते हुए चुनाव आयोग को घेरा।

राजद नेता और तेजस्वी यादव ने इस प्रक्रिया को असंवैधानिक करार देते हुए कहा, “अगर यह तुगलकी आदेश वापस नहीं लिया गया तो हम चुनाव के बहिष्कार जैसे विकल्प पर विचार करेंगे।” उन्होंने आगे कहा कि यह एक सोची-समझी रणनीति के तहत कमजोर वर्गों के मताधिकार को कुचलने की कोशिश है।

वहीं कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने इस मुद्दे को संसद में उठाते हुए मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) के हालिया बयान को “बकवास” बताया। राहुल गांधी ने कहा कि, “CEC का बयान लोकतंत्र का अपमान है। SIR एक राजनीतिक षड्यंत्र है।”

चुनाव आयोग ने अपने बचाव में कहा कि SIR का उद्देश्य मतदाता सूची को निष्पक्ष और सटीक बनाना है। मुख्य चुनाव आयुक्त ने कहा, “हम लोकतंत्र की हत्या नहीं होने देंगे। SIR प्रक्रिया के तहत केवल अयोग्य और फर्जी नामों को हटाया जाएगा, किसी समुदाय विशेष को निशाना नहीं बनाया जा रहा है।”

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह मुद्दा आने वाले उपचुनावों और 2026 विधानसभा चुनाव से पहले एक बड़ा राजनीतिक मोड़ बन सकता है। यदि SIR पर सहमति नहीं बनी तो बिहार में सत्तारूढ़ गठबंधन और केंद्र सरकार के बीच टकराव और गहरा सकता है।

SIR को लेकर चल रहा यह विवाद अभी खत्म होता नहीं दिख रहा। आने वाले दिनों में विपक्षी दलों की संयुक्त बैठक, चुनाव आयोग पर कानूनी दबाव और जन आंदोलनों की रणनीति इस मसले को और गरमा सकती है।