मामला तब शुरू हुआ जब राहुल गांधी ने हाल ही में एक सार्वजनिक कार्यक्रम में चुनाव आयोग पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा था कि आयोग ने सत्ताधारी पार्टी के पक्ष में काम किया और मतों में हेराफेरी की। इसके जवाब में चुनाव आयोग ने उन्हें नोटिस भेजते हुए कहा कि यदि उनके पास ठोस प्रमाण हैं तो एफिडेविट के साथ प्रस्तुत करें। आयोग ने उनके सभी आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि चुनाव प्रक्रिया पारदर्शी और निष्पक्ष रही है।
राहुल गांधी ने आयोग को दिए अपने जवाब में कहा कि उन्होंने संसद में संविधान की शपथ ली है और वही उनके बयान की बुनियाद है। हालांकि, आयोग का कहना है कि शपथ के आधार पर लगाए गए आरोप कानूनी रूप से पर्याप्त नहीं हैं और इन्हें साबित करने के लिए तथ्यात्मक सबूत जरूरी हैं।
इस मुद्दे पर विपक्ष के कुछ नेता राहुल गांधी का समर्थन करते दिख रहे हैं। कांग्रेस सूत्रों के अनुसार, पार्टी 11 अगस्त को इस मामले को लेकर विरोध प्रदर्शन करने की योजना बना रही है। हालांकि, राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि विपक्ष इस मुद्दे पर पूरी तरह एकजुट नहीं है और कांग्रेस के अंदर भी इस पर पूर्ण सहमति नहीं बन पाई है।
चुनाव आयोग की सख्त प्रतिक्रिया से यह स्पष्ट है कि संस्था अपने अधिकार और छवि को लेकर गंभीर है और बिना आधार वाले आरोपों को सहन करने के मूड में नहीं है। वहीं, राहुल गांधी के लिए यह मामला राजनीतिक रूप से चुनौतीपूर्ण हो सकता है, खासकर तब जब उनके पास आरोपों को समर्थन देने के लिए ठोस दस्तावेज या डेटा उपलब्ध नहीं है।
अब सभी की निगाहें 11 अगस्त को प्रस्तावित कांग्रेस के विरोध प्रदर्शन और राहुल गांधी के आगे के कदम पर टिकी हैं। यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि क्या यह मुद्दा विपक्ष के लिए एक बड़े आंदोलन का रूप लेगा या राजनीतिक बयानबाज़ी तक सीमित रह जाएगा।