सुप्रीम कोर्ट ने कांवड़ यात्रा मार्ग पर दुकानों में QR कोड लगाने के उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकार के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए दोनों सरकारों को नोटिस जारी किया है। कोर्ट ने उनसे 22 जुलाई तक जवाब दाखिल करने को कहा है। यह मामला निजता के अधिकार, धार्मिक स्वतंत्रता और सुप्रीम कोर्ट के पुराने आदेशों के उल्लंघन से जुड़ा है।

याचिका दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अपूर्वानंद झा और सामाजिक कार्यकर्ता आकार पटेल की ओर से दायर की गई है। इसमें कहा गया है कि 25 जून 2025 को उत्तर प्रदेश प्रशासन ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कांवड़ यात्रा मार्ग पर स्थित सभी भोजनालयों और दुकानों में QR कोड अनिवार्य करने का आदेश दिया था। याचिकाकर्ताओं का आरोप है कि इस आदेश से दुकानदारों की पहचान और उनकी धार्मिक जानकारी सार्वजनिक हो जाती है, जो संविधान के तहत मिले निजता और धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकारों का उल्लंघन है।

मंगलवार को न्यायमूर्ति एम.एम. सुंदरेश और न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने मामले की सुनवाई की। याचिकाकर्ताओं के वकील शादान फरासत ने उत्तराखंड सरकार द्वारा दो सप्ताह का समय मांगे जाने का विरोध करते हुए तर्क दिया कि कांवड़ यात्रा सीमित समय की है, इसलिए त्वरित सुनवाई जरूरी है। उन्होंने यह भी दावा किया कि यह आदेश सुप्रीम कोर्ट के 2024 के उस निर्देश का उल्लंघन है जिसमें केवल भोजन के प्रकार (शाकाहारी/मांसाहारी) को प्रदर्शित करने की अनुमति दी गई थी।

वहीं, उत्तर प्रदेश सरकार ने कोर्ट को बताया कि QR कोड व्यवस्था का उद्देश्य यात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित करना, खाद्य गुणवत्ता की निगरानी करना और प्रशासनिक नियंत्रण बनाए रखना है। इसके पीछे कोई भेदभावपूर्ण मंशा नहीं है।

इस मामले में तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा और सिविल राइट्स संगठन ‘एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स’ भी याचिकाकर्ता हैं। याचिका में दावा किया गया है कि QR कोड नीति धार्मिक भेदभाव को बढ़ावा दे सकती है और खासकर अल्पसंख्यक समुदाय के व्यवसायियों को निशाना बना सकती है।

QR कोड विवाद ने कांवड़ यात्रा 2025 को लेकर संवैधानिक और सामाजिक बहस को गहरा कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट की 22 जुलाई को होने वाली अगली सुनवाई पर सबकी निगाहें टिकी हैं, जहां यह तय होगा कि यह व्यवस्था संविधान के अनुरूप है या नहीं।