क्या है नेशनल हेराल्ड विवाद?
नेशनल हेराल्ड अखबार की स्थापना 1938 में पंडित जवाहरलाल नेहरू ने की थी, जिसे एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (एजेएल) प्रकाशित करता था। वर्ष 2008 में इसका प्रकाशन बंद होने के बाद कांग्रेस पार्टी ने एजेएल को 90.25 करोड़ रुपये का बिना ब्याज ऋण प्रदान किया। ईडी का आरोप है कि यह ऋण बाद में यंग इंडियन प्राइवेट लिमिटेड (वाईआईएल) को मात्र 50 लाख रुपये में ट्रांसफर कर दिया गया। वाईआईएल में सोनिया और राहुल गांधी की 38-38% हिस्सेदारी है।
ईडी के अनुसार, इस सौदे के जरिए वाईआईएल ने एजेएल की 99% इक्विटी पर नियंत्रण प्राप्त किया और इसके साथ देशभर की कई महंगी अचल संपत्तियां भी आ गईं। इनमें दिल्ली का हेराल्ड हाउस, मुंबई की एक नौ मंजिला इमारत और लखनऊ, पंचकुला, पटना व इंदौर की संपत्तियां शामिल हैं। ईडी ने नवंबर 2023 में इन संपत्तियों को अटैच कर लिया था, जिनकी कुल कीमत 751.9 करोड़ रुपये बताई गई है।
ईडी के आरोप और कोर्ट में चल रही कार्रवाई
ईडी ने चार्जशीट में आरोप लगाया है कि यह एक “आपराधिक साजिश” थी, जिसके तहत यंग इंडियन के लाभार्थियों को गैरकानूनी तरीके से करोड़ों की संपत्तियों का मालिक बनाया गया। एजेंसी ने यह भी दावा किया है कि इस पूरे ट्रांजैक्शन के दौरान किसी भी नियामक संस्था, जैसे एनसीएलटी, से अनुमति नहीं ली गई, जिससे संदेह और बढ़ जाता है।
मामले की शुरुआत 2012 में बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी की शिकायत से हुई थी। ईडी ने 2021 में जांच शुरू की और अप्रैल 2025 में सोनिया गांधी, राहुल गांधी, सैम पित्रोदा और अन्य के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की। मई 2025 से कोर्ट में इस मामले की नियमित सुनवाई चल रही है।
कांग्रेस का जवाब और राजनीतिक माहौल
कांग्रेस ने इन आरोपों को पूरी तरह राजनीति से प्रेरित बताया है। पार्टी का कहना है कि यंग इंडियन एक गैर-लाभकारी संस्था है और यह पूरी प्रक्रिया कंपनी कानून के तहत हुई थी। कांग्रेस का यह भी दावा है कि एजेएल की संपत्तियों का मूल्य 350 करोड़ रुपये से अधिक नहीं है, जबकि ईडी ने 2000 करोड़ रुपये का अनुमान लगाया है।
अब इस बहुचर्चित मामले में सभी की निगाहें 29 जुलाई की सुनवाई पर टिकी हैं। यदि कोर्ट ईडी के आरोपों को स्वीकार करता है, तो यह कांग्रेस नेतृत्व के लिए कानूनी और राजनीतिक रूप से बड़ा झटका हो सकता है। वहीं, अगर कोर्ट इन आरोपों को खारिज करता है, तो कांग्रेस को इससे राहत मिल सकती है। आने वाले दिनों में यह मामला भारतीय राजनीति और न्याय प्रणाली दोनों के लिए एक निर्णायक मोड़ बन सकता है।