पाकिस्तान की सत्ता और सैन्य ढांचे की एक बार फिर सच्चाई सामने आ गई है। हाल ही में पाकिस्तानी मीडिया में यह शोर मचाया गया कि सेनाध्यक्ष जनरल असीम मुनीर को अमेरिका के प्रतिष्ठित विक्ट्री डे परेड में शामिल होने का न्योता मिला है। लेकिन सच्चाई यह है कि उन्हें कोई आधिकारिक निमंत्रण मिला ही नहीं। यह दौरा सिर्फ एक निजी विज़िट है, जिसमें वे कुछ अमेरिकी अधिकारियों से चुपचाप मिलकर लौट जाएंगे। इस बीच इज़रायल द्वारा ईरान पर किए गए भीषण सैन्य हमले ने पाकिस्तान को भी दहशत में डाल दिया है।

जनरल मुनीर का अमेरिका भ्रम

पाकिस्तानी मीडिया में यह प्रचार किया जा रहा था कि जनरल मुनीर को अमेरिका ने विक्ट्री डे परेड में बुलाया है। लेकिन अमेरिकी रक्षा विभाग या व्हाइट हाउस की ओर से ऐसा कोई बयान नहीं आया। जानकारों के मुताबिक, यह दौरा सिर्फ कुछ बैकचैनल बैठकों और रणनीतिक चर्चाओं तक सीमित रहेगा। न तो कोई सार्वजनिक मंच मिलेगा, न ही कोई परेड में औपचारिक उपस्थिति। सवाल यह उठता है कि फिर इतनी जल्दबाज़ी क्यों? क्यों पाकिस्तानी आर्मी चीफ इस दौरे को इतनी प्रतिष्ठा देने की कोशिश कर रहे हैं?

इज़रायल का ‘ऑपरेशन राइजिंग लायन’ और पाकिस्तान की चिंता

इज़रायल ने हाल ही में ईरान पर एक बड़ा सैन्य हमला किया है। इस हमले में तेहरान स्थित न्यूक्लियर साइट्स और मिलिट्री ठिकानों को टारगेट किया गया, जिसमें ईरानी सेना प्रमुख जनरल मोहम्मद बाघेरी और कई वरिष्ठ वैज्ञानिकों की मौत हो गई। पाकिस्तान को अब इस बात का डर सता रहा है कि कहीं अगला निशाना वह न बन जाए। पाकिस्तान की ज़मीन पर चल रहे संदिग्ध परमाणु और आतंकी प्रोजेक्ट्स को लेकर पहले भी कई बार अंतरराष्ट्रीय एजेंसियां सतर्क कर चुकी हैं।

पाकिस्तान को एहसास है कि अगर ईरान जैसे हाई-सिक्योरिटी देश के न्यूक्लियर साइट्स एक सुबह में ध्वस्त हो सकते हैं, तो उसके कमजोर ढांचे की क्या बिसात? यही डर जनरल मुनीर की बेचैनी की असली वजह है। शायद इसी लिए वे अमेरिका की ओर देख रहे हैं—संरक्षण, समर्थन और सुरक्षा के लिए। लेकिन झूठ के सहारे खड़ी इमारतें ज्यादा देर टिकती नहीं।